झारखंड राज्य में देवघर एक स्थान है जहां बाबा भोले नाथ का एक बहुत पवित्र मंदिर है जिसे आमतौर पर बैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है, भारत में यह बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है है, इसे भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास माना जाता है। यह मंदिर, देवघर बस स्टैंड से करीब 3.5 किमी दूर है।लोगो की मान्यता है कि बाबा बैजनाथ के दरबार में जो भी अपनी इच्छा लेकर जाता है बाबा भोलेनाथ उसकी इच्छा जरूर पूरी करते हैं। इसी अटल आस्था के कारण बैजनाथ मंदिर में हरदम भक्तों का आना-जाना लगा रहता है।बाबा बैजनाथ धाम से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा है। लंका का राजा रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने लगा। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और रावण से कोई बर(वरदान) मांगने के लिए कहा। रावण ने कहा कि आप लंका में निवास करें। शिव ने कहा कि ऐसा संभव नहीं है तुम चाहो तो मेरा शिवलिंग ले जा सकते हो। यह शिवलिंग साक्षात मेरे स्वरूप में होगा। लेकिन इसे रास्ते में कहीं मत रखना, इसे जहां रखोगे यह वहीं स्थापित हो जाएगा।रावण खुश होकर शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चल पड़ा। देवताओं को इससे बहुत चिंता होने लगी कि शिव का आर्शीवाद मिल जाने से रावण और अत्याचारी बन जाएगा। देवताओं ने एक चाल चली जिससे रावण शिवलिंग को अपने साथ नहीं ले जा सके। देवताओं के अनुरोध पर मां गंगा रावण की पेट में समा गयी। इससे रावण को बहुत तेज लघुशंका लग गयी।
उसे शिवलिंग को हाथ में लेकर लघुशंका करना ठीक नहीं लग रहा था। उसने अपने चारों ओर देखा तो एक वृद्ध व्यक्ति नज़र आया जो गाय चरा रहा था,रावण ने उस वृद्ध व्यक्ति से कहा कि शिवलिंग को पकड़ कर रखे वह लघुशंका कर के आता है। रावण ने वृद्ध व्यक्ति सी भी कहा कि शिवलिंग को भूमि पर नहीं रखना। रावण जब लघुशंका करने लगा तब उसकी लघुशंका से एक तालाब बन गया लेकिन रावण की लघुशंका समाप्त नहीं हुई। उस वृद्ध व्यक्ति के रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने रावण से कहा कि बहुत देर हो गयी है मै अब और शिवलिंग को लेकर खड़ा नहीं रह सकता। इतना कहकर उस वृद्ध व्यक्ति ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया। इसके बाद रावण की लघुशंका भी समाप्त हो गयी। लेकिन भूमि का स्पर्श हो जाने के कारण रावण के अथक प्रयास के बावजूद शिवलिंग वहां से टस से मस नहीं हुआ।इससे क्रोधित होकर रावण ने शिवलिं के ऊपर अपने पैर से प्रहार किया जिससे शिवलिंग जमीन में और समा गया। अंत में थक कर रावण को उसी स्थान पर शिवलिंग की पूजा अर्चना करनी पड़ी और रावण शिवलिंग को लंका ले जाने में विफल हुआ। काफी समय बाद इस स्थान पर बैजू नाम के एक चरवाहे को बाबा बोले नाथ का ये शिवलिंग दिखा जिसने लोगो को बताया। इसी चरवाहे के नाम से ये यह शिवलिंग बैजनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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