असहाय और बेसहारा जिंदगियों का सहारा बनीं, विनीता पांडेय उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के छोटे से गांव ‘अहरौली दीक्षित’ के ब्राह्मण परिवार में उनका जन्म हुआ। उस समय अनीता के गांव में पढाई - लिखाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था। लेकिन विनीता के पिता ने सारी परंपरा को तोड़ के अनीता को पढ़ाया। वहीं विनीता के खेल कूद से भी लोगों को परेशानी थी। क्योकि वो गांव था। लेकिन विनीता खेल - कूद में भी तेज थी। तब विनीता का सहारा उनके बड़े भैया बन गए। खूब ताने-उलाहने सुनती रही , लेकिन हार नहीं मानी। रेस और जंपिंग में भी पहले स्कूल, फिर ब्लॉक, जिला और मंडल स्तर तक खेली। जब मंडल स्तर पर पार्टिसिपेट करने जाना था, तब सबने मना कर दिया। वही लोग विनीता के पापा के मुंह पर बोल जाते, ‘पहले लड़कों के स्कूल में पढ़ने भेजा और अब खेलने भी भेज रहे हो। इज्जतदार घरों की बेटियां ऐसे मैदान में कूदती-फांदती अच्छी नहीं लगतीं। बेटी को इतनी छूट नहीं देनी चाहिए। परिवार के मुंह पर कालिख पोतकर भाग जाएगी।’ गांव में लड़कियों की पढ़ाई से ज्यादा शादी चिंता और चर्चा का विषय हुआ करती थी। मऊ जिले की पहली लोकपाल विनीता पांडेय का, जो बाधाओं को मात दे महिलाओं के लिए मिसाल बनीं।
लोगों को इंसाफ दिलाने वाली महिला बनी पहली लोकपाल।
