एक समय की बात है। एक इंसान रेगिस्तान में फंस गया था। वो मन ही मन बस सोचे जा रहा था की यहाँ अगर पानी होता तो कितना अच्छा होता। यहाँ पेड़ - पौधे होते तो कितना अच्छा होता और यहां पर कितने लोग घूमने आना चाहते होंगे। मतलब बस वो दोष दे रहा था ब्लेम कर रहा था। वो बस यही सोच रहा था की यह होता तो वो होता और वो होता तो शायद ऐसा होता। ऊपरवाला देख रहा था अब उस इंसान ने सोचा यहां पर पानी नहीं दिख रहा है । उसको थोड़ी देर आगे जाने के बाद उसको एक कुआं दिखाई दिया। जो कि पानी से लबालब भरा हुआ था काफी देर तक विचार-विमर्श करता रहा खुद से। फिर बाद में उसको वहां पर एक रस्सी और बाल्टी दिखाई देती है। वही फिर इसके बाद कहीं से , एक पर्ची उड़ के आती है जिस पर्ची में लिखा हुआ था
कि तुमने कहा था कि यहां पर पानी का कोई स्त्रोत नहीं है अब तुम्हारे पास पानी का स्रोत भी है। अगर तुम चाहते हो तो यहां पर पौधे लगा सकते हो। वह चला गया। तो यह कहानी हमें क्या सिखाती है। हमें कभी किसी को दोष नहीं देना चाहिए।
हमें परिस्थितियों को दोष नहीं देना चाहिए।
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