"रामधारी सिंह दिनकर जी' द्वारा रचित रश्मिरथी ' कुंती पे "श्रीकृष्ण और कर्ण की बात.."


Rashmirathi Pay, composed by "Ramdhari Singh Dinkar Ji", "talk of Shri Krishna and Karna .."

कुन्ती ने केवल जन्म दिया,
राधा ने माँ का कर्म किया
       पर कहते जिसे असल जीवन,
       देने आया वह दुर्योधन
      वह नहीं भिन्न माता से है
      बढ़ कर सोदर भ्राता से है

राजा रंक से बना कर के,
यश, मान, मुकुट पहना कर के
       बांहों में मुझे उठाकर के,
       सामने जगत के ला करके
      करतब क्या क्या न किया उसने
      मुझको नव-जन्म दिया उसने

है ऋणी कर्ण का रोम-रोम,
जानते सत्य यह सूर्य-सोम
       तन मन धन दुर्योधन का है,
       यह जीवन दुर्योधन का है
      सुर पुर से भी मुख मोडूँगा,
      केशव! मैं उसे न छोडूंगा

सच है मेरी है आस उसे,
मुझ पर अटूट विश्वास उसे
       हा सच है ,मेरे ही बल पे,
      ठाना है उसने महासमर
       पर मैं कैसा पापी हूँगा?
       दुर्योधन को धोखा दूँगा?

रह साथ सदा खेला खाया,
सौभाग्य-सुयश उससे पाया
       अब जब विपत्ति आने को है,
       घनघोर प्रलय छाने को है
       तज उसे भाग यदि जाऊंगा 
       कायर, कृतघ्न कहलाऊँगा

मैं भी कुन्ती का एक तनय,
किसको होगा इसका प्रत्यय
       संसार मुझे धिक्कारेगा,
       मन में वह यही विचारेगा
       फिर गया तुरत जब राज्य मिला,
       यह कर्ण बड़ा पापी निकला

मैं ही न सहूंगा विषम डंक,
अर्जुन पर भी होगा कलंक
        सब लोग कहेंगे डर कर ही,
       अर्जुन ने अद्भुत नीति गही
       चल चाल कर्ण को फोड़ लिया
       सम्बन्ध अनोखा जोड़ लिया

कोई भी कहीं न चूकेगा,
सारा जग मुझ पर थूकेगा
       तप, त्याग, शील, जप, योग, दान,
        मेरे होंगे मिट्टी समान
       लोभी लालची कहाऊँगा
       किसको क्या मुख दिखलाऊँगा?

जो आज आप कह रहे आर्य,
कुन्ती के मुख से कृपाचार्य
         सुन वही हुए लज्जित होते,
         हम क्यों रण को सज्जित होते       
        मिलता न कर्ण दुर्योधन को,
       पांडव न कभी जाते वन को
 
 

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