रश्मिरथी 'कर्ण का कुंती पे व्यंग्य : "श्रीकृष्ण और कर्ण की बातचीत"


Rashmirathi Karnas Kunti Pay Satire: "Sri Krishna and Karnas conversation

मैं सूत-वंश में पलता था,
अपमान अनल में जलता था,
सब देख रही थी दृश्य पृथा,
माँ की ममता पर हुई वृथा
         छिप कर भी  सुधि ले न सकी,
         छाया अंचल की दे न सकी|

पा पाँच तनय फूली फूली,
दिन-रात बड़े सुख में भूली
        कुन्ती गौरव में चूर रही,
        मुझ पतित पुत्र से दूर रही
        क्या हुआ कि अब अकुलाती है?
        किस कारण मुझे बुलाती है?

पा पाँच तनय फूली फूली,
दिन-रात बड़े सुख में भूली
       कुन्ती गौरव में चूर रही,
       मुझ पतित पुत्र से दूर रही
        क्या हुआ कि अब अकुलाती है?
        किस कारण मुझे बुलाती है?

क्या पाँच पुत्र हो जाने पर,
सुत के धन धाम गंवाने पर
         या महानाश के छाने पर,
         अथवा मन के घबराने पर
        नारियाँ सदय हो जाती हैं
        बिछुडों को गले लगाती है?

कुन्ती जिस भय से भरी रही,
तज मुझे दूर हट खड़ी रही
         वह पाप अभी भी है मुझमें,
         वह शाप अभी भी है मुझमें
         क्या हुआ कि वह डर जायेगा?
         कुन्ती को काट न खायेगा?

सहसा क्या हाल विचित्र हुआ,
मैं कैसे पुण्य-चरित्र हुआ?
       कुन्ती का क्या चाहता ह्रदय,
        मेरा सुख या पांडव की जय?
        यह अभिनन्दन नूतन क्या है?
        केशव! यह परिवर्तन क्या है?

मैं हुआ धनुर्धर जब नामी,
सब लोग हुए हित के कामी
       पर ऐसा भी था एक समय,
       जब यह समाज निष्ठुर निर्दय
      किंचित न स्नेह दर्शाता था,
      विष-व्यंग सदा बरसाता था

उस समय सुअंक लगा कर के,
अंचल के तले छिपा कर के
       चुम्बन से कौन मुझे भर कर,
       ताड़ना-ताप लेती थी हर?
      राधा को छोड़ भजूं किसको,
      जननी है वही, तजूं किसको?

 

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