मैं एक जिज्ञासु प्रकृति वाला लड़का हूं सदैव प्रश्नों में डूबा हुआ....
खुद को मोह माया से विरक्त समझता हूं....
संसार बंधन और सारी धारणाओं को गूढता से समझता हूं और फिर...
जब कभी भी किसी मां के मंदिर गया शांत एक अकेले स्थान पर बैठ मन्दिर परिसर की छोटी छोटी चीजों को निहारने लगता हूं...
कभी मध्य प्रांगण में जलते दीपक को...
कभी लड्डू ताकते लालायित वानरों को...
कभी बाहर बैठ कर नाद करते नटो को...
कभी भिक्षा मांगती बूढ़ी दादी मां को...
कभी मंदिर में जल्दबाजी में अगरबाती से हाथ जलते लोगों को ....
एकदम शून्य सा हो जाता हूं... वो भीड़... वो कोलाहल...मुझे कुछ सुनाई नहीं देता...
सिर्फ वो तीव्र गति से बज रहे ढोलक मुझे मेरे कानो में मिश्री घोलते मंद मंद सुनाई देते....
आवक सा रह जाता हूं पता नही कहां सुध चली जाती है...
अपनी मां को निहारा करता हूं उनके पूजन करने के तरीके पर इतना मोहित होता हूं की उनकी मासूमियत देख जी होता है जाकर सभी के बीच में उन्हें गले से लगा लूं और फूट फूट कर विलाप करूं एक मां से अपनी मां को हमेशा साथ रखने की प्रार्थना कर लूं वो मेरा सर्वस्व ले लें,
मगर वो भगवती ,वो अमरकांता मेरी मां को हमेशा ऐसे ही रखे...
है ना बचपना ?? आप सब जानते हुए करते हो एक सामान्य जीव की तुलना ईश्वर से ?
हां...
मगर वो प्रेम ही कैसा जो आपके प्रेम को परमात्मा ना बना दें....
मेरा प्रेम मेरी मां के प्रति जितना आगाध है उससे मैने बस यही सीखा की कोई भी मां हों मुझे उनको प्रसन्न करने के लिए मुझे आडंबर नही करना होगा मैं कोई दीपक नही जलाऊंगा , मै जल्दबाजी में कभी हाथ जलाने मंदिर नही जाऊंगा मैं यूं ही जीवन भर मंदिर परिसर में जाकर बैठता रहूंगा सब कुछ निहारता रहूंगा मैं बस अपनी मां का स्वरूप भगवती में देखता हूं मैं उनसे लिपट कर रो दूंगा....वो मेरी समस्त मनोकामना पूर्ण करेंगी जैसे मेरी मां करती हैं
और मैं उन्हें भेट करूंगा गोटे दार लाल चुनरी
जय माता दी