"क्या कहते हो, किसी तरह भी|
भूलूँ और भुलाने दूँ||
गत जीवन को तरल मेघ-सा
स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ||
शान्ति और सुख से ये |
जीवन के दिन शेष बिताने दूँ||
कोई निश्चित मार्ग बनाकर|
चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ||
कैसा निश्चित मार्ग, ह्रदय-धन|
समझ नहीं पाती हूँ मैं||
वही समझने एक बार फिर
क्षमा करो आती हूँ मैं"||
---""सुभद्रा कुमारी चौहान" -----
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