ये कहानी है जज्बे की, लगन की, मेहनत की और इस विश्वास की अगर मेहनत और आत्मविश्वास साथ हों तो संसार में कुछ भी नामुमकिन नहीं। सन 1965 में महाराष्ट्र के एक बेहद निम्नवर्गीय परिवार में जन्मी एक ऐसी ही प्रतीक्षा नामक महिला ने वो कर दिखाया जो महिला के लिए ही नहीं बल्कि हर इंसान के लिए प्रेरणा बन सकता है। प्रतिक्षा तोंडवलकर ने 21 वर्ष की उम्र सन् 1985 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मुंबई शाखा में बतौर स्वीपर नौकरी ज्वॉइन की। यहाँ पूरे दिन कुर्सी-मेज झाड़ने, झाडू लगाने, फाइलों पर पड़ी धूल हटाने और सफाई करने के बाद प्रतीक्षा को 70 रुपये मिलते थे। मुंबई जैसे शहर में इतने कम पैसों में घर चलाना मुश्किल था। प्रतीक्षा अपने आसपास बैंक में लोगों को साफ, सुंदर, कलफ लगे कपड़ों में काम पर आते देखती, वो कुर्सी-मेज पर बैठकर काम करते थे और उन्हें अच्छी तंख्वाह भी मिलती थी। इन लोगों लोगों से प्रेरणा लेते हुए प्रतीक्षा ने दोबारा पढ़ाई शुरू करने की ठान ली, बैंक की नौकरी और घर के कामकाज निपटाने के बाद पढ़ाई करने लगी। उन्होंने विक्रोली के एक कॉलेज में बारहवीं में दाखिला लिया और अपनी लगन और मेहनत से सन् 1995 में 12वीं की परीक्षा भी पास कर ली। इसके बाद प्रतीक्षा को बैंक में क्लर्क की नौकरी मिल गयी। प्रतीक्षा ने खूब मेहनत से काम किया, साल बीतते गए और प्रतीक्षा एक के बाद एक प्रमोशन पाकर आगे बढ़ती गईं और अंत में असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद तक पहुंच गईं। अब उनकी नौकरी समाप्त हो रही है। अगर प्रतीक्षा यह कर सकती हैं तो आप क्यों नहीं, आपको किसने रोका है।
स्वीपर की नौकरी से की शुरुआत, आज असिस्टेंट जनरल मैनेजर हैं प्रतीक्षा।
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