अगर वाराणसी अपनी तंग गलियों के लिए विख्यात है, तो मोक्षदायी माँ गंगा की बात न करना बेमानी होगी। दुनिया के अपने सबसे पुराने इतिहास को समेटे, जिसमें टूटते और बनते, बिखरते और संवारते देखा है। जिसने पाव पखारते हुए बाबा विश्वनाथ जी का जय घोष किया, तो कालांतर में उन आतताइयों को भी अपने आँखों से देखा है। जिस घाट के रज कण को रसखान माथे से लगा कर धन्य समझते थे, जहां बैठे एक सन्यासी प्रेरणा से प्रेरित होकर रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना करते है। उस पतित पावन माँ गंगा की आरती किसी दिव्य रूप का दर्शन ही तो है।
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